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खराब हवा, छुट्टियाँ और याद आता बचपना

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  दिल्ली की हवा क्या खराब हुई, रातों-रात बच्चों के स्कूलों में फटाफट छुट्टियों की घोषणा हुई। अचानक अवकाशग्रस्त हुए बच्चों ने खुशी में भर कर ‘हुर्रे’ कहा तो आपदाग्रस्त मम्मियों ने व्हाट्सअप में लपक कर झाँका। वहाँ अगली सूचना मिलने तक स्कूल बंद किये जाने की खबर बाकायदा मौजूद थी। इस आशय के सर्कुलर की कॉपी वहाँ चस्पा थी। कोई संदेहास्पद किन्तु विश्वसनीय सूत्र नहीं, सब कुछ साफ-साफ। कोई ऐसा सूत्रधार भी नहीं जो बोलता कम छुपाता ज्यादा है। थोड़ा बहुत बता कर जोड़ देता है -शर्तें लागू।   झल्लायी हुई बच्चों की मम्मियों ने तुरंत बॉलकॉनी में पहुँच कर संकेत भाषा में एक गहरा सवाल हवा में उछाला - ये क्या? एक पड़ोसन ने संदेश का आशय ग्रहण किया और कोहनी मोड मुट्ठी को कान से लगा कूट मैसेज दिया – फोन करो। दूसरी ने बंद मुट्ठी को जल्दी जल्दी खोल-बंद किया। इसका निहतार्थ हुआ –जल्द ज़ूम पर आओ। इस सूचना को झटपट सब समझ गयीं। लॉकडाउन के अनुभव ने लोगों एक- दूसरे के दु:ख-सुख के प्रति स्थितिप्रज्ञ बनाने के साथ ही साथ नाना प्रकार की संवाद शैली में भी एक्सपर्ट भी बनाया है। सुनते हैं कि पहले अगल-बगल में रहने वाले प्रेमी-प्रेमि